tag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post3852710837283926524..comments2023-10-15T04:27:46.962-07:00Comments on bhardwaj'sblog: सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता हैchandrabhan bhardwajhttp://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-86749728624872829522010-10-02T01:12:39.390-07:002010-10-02T01:12:39.390-07:00भाई राजेंद्र जी, नमस्कार
आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस ...भाई राजेंद्र जी, नमस्कार<br /> आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर अपने विचार व्यक्त किये <br />इसके लिए आपका आभारी हूँ . आप तो स्वयं रचनाकार हैं और अच्छी <br />तरह समझते हैं कि हर रचनाकार अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करता है <br />अब यह पाठक के ऊपर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में ग्रहण <br />करता है इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है <br />जहाँ तक 'छिनाता' शब्द का प्रश्न है इस सम्बन्ध में मेरा कहना यह है <br />कि यहाँ पर 'छिनाता' के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द उपयुक्त ही नहीं होता <br />मैंने यहाँ लिखा है 'छिनाता वक़्त हाथों से' , वक़्त एक ऐसा यथार्थ है जो <br />स्वयं कुछ नहीं करता वरन किसी न किसी माध्यम से करवाता है. यदि मैं <br />'गिराता' शब्द का प्रयोग करता तो इसका अर्थ होता वक़्त स्वयं गिराता है <br />इसी तरह छीनता में भी वक़्त स्वयं छीनता जब कि छिनाता शब्द का अर्थ <br /> है कि वक़्त किसी दूसरे माध्यम से छिनवाता है अतः मेरे विचार में 'छिनाता' <br />शब्द से अधिक उपयुक्त कोई दूसरा शब्द होता ही नहीं अतः यह शब्द जमा नहीं <br />इस बात से मैं सहमत नहीं.<br />'ठिठकते पाँव के बिछुआ' के सम्बन्ध में मेरा विचार है कि काव्य में 'ठिठकते पाँव <br />के बिछुआ' बहुबचन के रूप में ही प्रयोग किये जाते हैं एक बचन में नहीं यह सही है कि <br />'बिछुआ' का बहुबचन 'बिछुए' है लेकिन पाँव के साथ 'के' शब्द प्रयुक्त हुआ है अतः यह <br />पूरा विन्यास ही बहुबचन हो जाता है. यदि 'पाँव का बिछुआ' होता तो एक्बचन होता' <br />साधारणतया बोलचाल में भी 'पाँव के बिछुआ' प्रयुक्त होते हैं. इस सम्बन्ध में एक <br />उदाहरण देना उचित होगा . 'नशा' एकबचन है इसका बहुबचन हुआ 'नशे' लेकिन इसका <br />प्रयोग करते समय लिखा जाता है 'वह नशे में है' या 'मैं नशे' में हूँ' जबकि एकबचन के हिसाब से <br />लिखा जाना चाहिए कि'वह नशा में है' या मैं नशा में हूँ' <br />पहले मैंने 'पाँव के बिछुए' प्रयोग किया था लेकिन रवानी में कुछ अटक सी महसूस होती थी <br />अतः फिर इसे बिछुआ' ही लिखा. मेरे विचार में यह कोई त्रुटि नहीं है <br />फिर भी यह तो ऐसा महासागर है जहाँ भिन्न भिन्न विचार पढ़ने को मिलते हैं <br />आपने मुझ नाचीज को समर्थवान कहा यह आपकी दरियादिली है वैसे मैं तो खुद को कुछ मानता ही नहीं <br />पुनः आपका आभार व्यक्त करता हूँchandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-18081592470969343442010-10-02T01:11:46.966-07:002010-10-02T01:11:46.966-07:00भाई राजेंद्र जी, नमस्कार
आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस ...भाई राजेंद्र जी, नमस्कार<br /> आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर अपने विचार व्यक्त किये <br />इसके लिए आपका आभारी हूँ . आप तो स्वयं रचनाकार हैं और अच्छी <br />तरह समझते हैं कि हर रचनाकार अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करता है <br />अब यह पाठक के ऊपर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में ग्रहण <br />करता है इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है <br />जहाँ तक 'छिनाता' शब्द का प्रश्न है इस सम्बन्ध में मेरा कहना यह है <br />कि यहाँ पर 'छिनाता' के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द उपयुक्त ही नहीं होता <br />मैंने यहाँ लिखा है 'छिनाता वक़्त हाथों से' , वक़्त एक ऐसा यथार्थ है जो <br />स्वयं कुछ नहीं करता वरन किसी न किसी माध्यम से करवाता है. यदि मैं <br />'गिराता' शब्द का प्रयोग करता तो इसका अर्थ होता वक़्त स्वयं गिराता है <br />इसी तरह छीनता में भी वक़्त स्वयं छीनता जब कि छिनाता शब्द का अर्थ <br /> है कि वक़्त किसी दूसरे माध्यम से छिनवाता है अतः मेरे विचार में 'छिनाता' <br />शब्द से अधिक उपयुक्त कोई दूसरा शब्द होता ही नहीं अतः यह शब्द जमा नहीं <br />इस बात से मैं सहमत नहीं.<br />'ठिठकते पाँव के बिछुआ' के सम्बन्ध में मेरा विचार है कि काव्य में 'ठिठकते पाँव <br />के बिछुआ' बहुबचन के रूप में ही प्रयोग किये जाते हैं एक बचन में नहीं यह सही है कि <br />'बिछुआ' का बहुबचन 'बिछुए' है लेकिन पाँव के साथ 'के' शब्द प्रयुक्त हुआ है अतः यह <br />पूरा विन्यास ही बहुबचन हो जाता है. यदि 'पाँव का बिछुआ' होता तो एक्बचन होता' <br />साधारणतया बोलचाल में भी 'पाँव के बिछुआ' प्रयुक्त होते हैं. इस सम्बन्ध में एक <br />उदाहरण देना उचित होगा . 'नशा' एकबचन है इसका बहुबचन हुआ 'नशे' लेकिन इसका <br />प्रयोग करते समय लिखा जाता है 'वह नशे में है' या 'मैं नशे' में हूँ' जबकि एकबचन के हिसाब से <br />लिखा जाना चाहिए कि'वह नशा में है' या मैं नशा में हूँ' <br />पहले मैंने 'पाँव के बिछुए' प्रयोग किया था लेकिन रवानी में कुछ अटक सी महसूस होती थी <br />अतः फिर इसे बिछुआ' ही लिखा. मेरे विचार में यह कोई त्रुटि नहीं है <br />फिर भी यह तो ऐसा महासागर है जहाँ भिन्न भिन्न विचार पढ़ने को मिलते हैं <br />आपने मुझ नाचीज को समर्थवान कहा यह आपकी दरियादिली है वैसे मैं तो खुद को कुछ मानता ही नहीं <br />पुनः आपका आभार व्यक्त करता हूँchandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-6949356742336669722010-10-02T01:10:54.291-07:002010-10-02T01:10:54.291-07:00भाई राजेंद्र जी, नमस्कार
आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस ...भाई राजेंद्र जी, नमस्कार<br /> आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर अपने विचार व्यक्त किये <br />इसके लिए आपका आभारी हूँ . आप तो स्वयं रचनाकार हैं और अच्छी <br />तरह समझते हैं कि हर रचनाकार अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करता है <br />अब यह पाठक के ऊपर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में ग्रहण <br />करता है इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है <br />जहाँ तक 'छिनाता' शब्द का प्रश्न है इस सम्बन्ध में मेरा कहना यह है <br />कि यहाँ पर 'छिनाता' के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द उपयुक्त ही नहीं होता <br />मैंने यहाँ लिखा है 'छिनाता वक़्त हाथों से' , वक़्त एक ऐसा यथार्थ है जो <br />स्वयं कुछ नहीं करता वरन किसी न किसी माध्यम से करवाता है. यदि मैं <br />'गिराता' शब्द का प्रयोग करता तो इसका अर्थ होता वक़्त स्वयं गिराता है <br />इसी तरह छीनता में भी वक़्त स्वयं छीनता जब कि छिनाता शब्द का अर्थ <br /> है कि वक़्त किसी दूसरे माध्यम से छिनवाता है अतः मेरे विचार में 'छिनाता' <br />शब्द से अधिक उपयुक्त कोई दूसरा शब्द होता ही नहीं अतः यह शब्द जमा नहीं <br />इस बात से मैं सहमत नहीं.<br />'ठिठकते पाँव के बिछुआ' के सम्बन्ध में मेरा विचार है कि काव्य में 'ठिठकते पाँव <br />के बिछुआ' बहुबचन के रूप में ही प्रयोग किये जाते हैं एक बचन में नहीं यह सही है कि <br />'बिछुआ' का बहुबचन 'बिछुए' है लेकिन पाँव के साथ 'के' शब्द प्रयुक्त हुआ है अतः यह <br />पूरा विन्यास ही बहुबचन हो जाता है. यदि 'पाँव का बिछुआ' होता तो एक्बचन होता' <br />साधारणतया बोलचाल में भी 'पाँव के बिछुआ' प्रयुक्त होते हैं. इस सम्बन्ध में एक <br />उदाहरण देना उचित होगा . 'नशा' एकबचन है इसका बहुबचन हुआ 'नशे' लेकिन इसका <br />प्रयोग करते समय लिखा जाता है 'वह नशे में है' या 'मैं नशे' में हूँ' जबकि एकबचन के हिसाब से <br />लिखा जाना चाहिए कि'वह नशा में है' या मैं नशा में हूँ' <br />पहले मैंने 'पाँव के बिछुए' प्रयोग किया था लेकिन रवानी में कुछ अटक सी महसूस होती थी <br />अतः फिर इसे बिछुआ' ही लिखा. मेरे विचार में यह कोई त्रुटि नहीं है <br />फिर भी यह तो ऐसा महासागर है जहाँ भिन्न भिन्न विचार पढ़ने को मिलते हैं <br />आपने मुझ नाचीज को समर्थवान कहा यह आपकी दरियादिली है वैसे मैं तो खुद को कुछ मानता ही नहीं <br />पुनः आपका आभार व्यक्त करता हूँchandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-11565987656339153172010-10-02T01:10:46.665-07:002010-10-02T01:10:46.665-07:00भाई राजेंद्र जी, नमस्कार
आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस ...भाई राजेंद्र जी, नमस्कार<br /> आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर अपने विचार व्यक्त किये <br />इसके लिए आपका आभारी हूँ . आप तो स्वयं रचनाकार हैं और अच्छी <br />तरह समझते हैं कि हर रचनाकार अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करता है <br />अब यह पाठक के ऊपर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में ग्रहण <br />करता है इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है <br />जहाँ तक 'छिनाता' शब्द का प्रश्न है इस सम्बन्ध में मेरा कहना यह है <br />कि यहाँ पर 'छिनाता' के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द उपयुक्त ही नहीं होता <br />मैंने यहाँ लिखा है 'छिनाता वक़्त हाथों से' , वक़्त एक ऐसा यथार्थ है जो <br />स्वयं कुछ नहीं करता वरन किसी न किसी माध्यम से करवाता है. यदि मैं <br />'गिराता' शब्द का प्रयोग करता तो इसका अर्थ होता वक़्त स्वयं गिराता है <br />इसी तरह छीनता में भी वक़्त स्वयं छीनता जब कि छिनाता शब्द का अर्थ <br /> है कि वक़्त किसी दूसरे माध्यम से छिनवाता है अतः मेरे विचार में 'छिनाता' <br />शब्द से अधिक उपयुक्त कोई दूसरा शब्द होता ही नहीं अतः यह शब्द जमा नहीं <br />इस बात से मैं सहमत नहीं.<br />'ठिठकते पाँव के बिछुआ' के सम्बन्ध में मेरा विचार है कि काव्य में 'ठिठकते पाँव <br />के बिछुआ' बहुबचन के रूप में ही प्रयोग किये जाते हैं एक बचन में नहीं यह सही है कि <br />'बिछुआ' का बहुबचन 'बिछुए' है लेकिन पाँव के साथ 'के' शब्द प्रयुक्त हुआ है अतः यह <br />पूरा विन्यास ही बहुबचन हो जाता है. यदि 'पाँव का बिछुआ' होता तो एक्बचन होता' <br />साधारणतया बोलचाल में भी 'पाँव के बिछुआ' प्रयुक्त होते हैं. इस सम्बन्ध में एक <br />उदाहरण देना उचित होगा . 'नशा' एकबचन है इसका बहुबचन हुआ 'नशे' लेकिन इसका <br />प्रयोग करते समय लिखा जाता है 'वह नशे में है' या 'मैं नशे' में हूँ' जबकि एकबचन के हिसाब से <br />लिखा जाना चाहिए कि'वह नशा में है' या मैं नशा में हूँ' <br />पहले मैंने 'पाँव के बिछुए' प्रयोग किया था लेकिन रवानी में कुछ अटक सी महसूस होती थी <br />अतः फिर इसे बिछुआ' ही लिखा. मेरे विचार में यह कोई त्रुटि नहीं है <br />फिर भी यह तो ऐसा महासागर है जहाँ भिन्न भिन्न विचार पढ़ने को मिलते हैं <br />आपने मुझ नाचीज को समर्थवान कहा यह आपकी दरियादिली है वैसे मैं तो खुद को कुछ मानता ही नहीं <br />पुनः आपका आभार व्यक्त करता हूँchandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-34066977247841210272010-10-02T01:10:33.904-07:002010-10-02T01:10:33.904-07:00भाई राजेंद्र जी, नमस्कार
आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस ...भाई राजेंद्र जी, नमस्कार<br /> आपने मेरी ग़ज़ल पढ़ी और उस पर अपने विचार व्यक्त किये <br />इसके लिए आपका आभारी हूँ . आप तो स्वयं रचनाकार हैं और अच्छी <br />तरह समझते हैं कि हर रचनाकार अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करता है <br />अब यह पाठक के ऊपर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में ग्रहण <br />करता है इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है <br />जहाँ तक 'छिनाता' शब्द का प्रश्न है इस सम्बन्ध में मेरा कहना यह है <br />कि यहाँ पर 'छिनाता' के अतिरिक्त अन्य कोई शब्द उपयुक्त ही नहीं होता <br />मैंने यहाँ लिखा है 'छिनाता वक़्त हाथों से' , वक़्त एक ऐसा यथार्थ है जो <br />स्वयं कुछ नहीं करता वरन किसी न किसी माध्यम से करवाता है. यदि मैं <br />'गिराता' शब्द का प्रयोग करता तो इसका अर्थ होता वक़्त स्वयं गिराता है <br />इसी तरह छीनता में भी वक़्त स्वयं छीनता जब कि छिनाता शब्द का अर्थ <br /> है कि वक़्त किसी दूसरे माध्यम से छिनवाता है अतः मेरे विचार में 'छिनाता' <br />शब्द से अधिक उपयुक्त कोई दूसरा शब्द होता ही नहीं अतः यह शब्द जमा नहीं <br />इस बात से मैं सहमत नहीं.<br />'ठिठकते पाँव के बिछुआ' के सम्बन्ध में मेरा विचार है कि काव्य में 'ठिठकते पाँव <br />के बिछुआ' बहुबचन के रूप में ही प्रयोग किये जाते हैं एक बचन में नहीं यह सही है कि <br />'बिछुआ' का बहुबचन 'बिछुए' है लेकिन पाँव के साथ 'के' शब्द प्रयुक्त हुआ है अतः यह <br />पूरा विन्यास ही बहुबचन हो जाता है. यदि 'पाँव का बिछुआ' होता तो एक्बचन होता' <br />साधारणतया बोलचाल में भी 'पाँव के बिछुआ' प्रयुक्त होते हैं. इस सम्बन्ध में एक <br />उदाहरण देना उचित होगा . 'नशा' एकबचन है इसका बहुबचन हुआ 'नशे' लेकिन इसका <br />प्रयोग करते समय लिखा जाता है 'वह नशे में है' या 'मैं नशे' में हूँ' जबकि एकबचन के हिसाब से <br />लिखा जाना चाहिए कि'वह नशा में है' या मैं नशा में हूँ' <br />पहले मैंने 'पाँव के बिछुए' प्रयोग किया था लेकिन रवानी में कुछ अटक सी महसूस होती थी <br />अतः फिर इसे बिछुआ' ही लिखा. मेरे विचार में यह कोई त्रुटि नहीं है <br />फिर भी यह तो ऐसा महासागर है जहाँ भिन्न भिन्न विचार पढ़ने को मिलते हैं <br />आपने मुझ नाचीज को समर्थवान कहा यह आपकी दरियादिली है वैसे मैं तो खुद को कुछ मानता ही नहीं <br />पुनः आपका आभार व्यक्त करता हूँchandrabhan bhardwajhttps://www.blogger.com/profile/09515769930349777559noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-60606748380572615512010-09-30T12:31:56.760-07:002010-09-30T12:31:56.760-07:00आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी
नमस्कार !
बुरा ...<b><i>आदरणीय चंद्रभान भारद्वाज जी </i></b> <br /> नमस्कार ! <br />बुरा न मानें तो कहूं , आपकी इस ग़ज़ल में वो बात नज़र नहीं आई जो अन्य ग़ज़लों में हुआ करती है ।<br />शब्द छिनाता भी जमा नहीं ।<br /><br />न सूखी डाल पर कोंपल न उस पर बौर आता है <br /> यहां आप बात " न बौर " के साथ " न कोंपल " की कहना चाहते हैं , लेकिन बल "सूखी डाल" पर आ रहा है । <br /> ठिठकते पांव के बिछुआ … में भी क्रिया बहुवचन में प्रयुक्त है , बिछुआ एकवचन। पांव के बिछुए होना चाहिए था .<br /><br />आप जैसे समर्थवान ग़ज़लकार से त्रुटि की तो मैं सोच भी नहीं सकता । हां , कुछ चूक कई जगह रह गई इस बार ।<br />अन्यथा ग़ज़ल बहुत शानदार जानदार है । <br /><b> </b> <b> </b> <br /><br /> शुभकामनाओं सहित<br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-80513157845998814642010-09-29T10:43:22.672-07:002010-09-29T10:43:22.672-07:00सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता है
गिराता है...सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता है <br />गिराता है हमें अपना उठाने और आता है<br />गज़क बेहतरीन है .हाँ इन विचारों से पूर्णतया सहमत नहीं हूँ.S.M.Masoomhttps://www.blogger.com/profile/00229817373609457341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-19483745957526904942010-09-28T22:04:53.586-07:002010-09-28T22:04:53.586-07:00वाह , ये ग़ज़ल तो आपके अनुभव से पगी है , और इंदौर...वाह , ये ग़ज़ल तो आपके अनुभव से पगी है , और इंदौर , ये भी खुदा ने आपको खूब बख्शा ...ग़ज़ल पसंद आई , बधाई ।शारदा अरोराhttps://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4857185426641824087.post-6217252169092383242010-09-26T23:52:59.903-07:002010-09-26T23:52:59.903-07:00सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता है
गिराता है...सफ़र में चलते चलते ऐसा भी इक दौर आता है <br />गिराता है हमें अपना उठाने और आता है <br /><br />बेहतरीन मतला ,बहुत ख़ूब !<br />ख़ूबसूरत ग़ज़ल!इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.com