Tuesday, March 27, 2012

प्रतिसाद भी उसको मिला


हौसले करते फतह कठिनाइयों का हर किला
श्रम किया जिसने यहाँ प्रतिसाद भी उसको मिला

कब तलक करते रहोगे यों प्रतीक्षा राम की
उठ स्वयं जड़ चेतनाओं की अहिल्या को जिला

हाथ में छैनी हथौड़ा को उठाओ तो  सही
खुद ब खुद ढलती चलेगी मूर्ति में हर इक शिला

चील कौए गिद्ध उल्लू हैं विराजित डाल पर
है मगर निर्वासिता सी बाग़ में अब कोकिला

जय-पराजय दुक्ख-सुख या लाभ- हानि न देख अब
अंग हैं ये ज़िन्दगी के कर न कुछ शिकवा गिला

इक अटल विश्वास से रख राह में पहला कदम
हर कदम पर देखना बनता चलेगा काफिला

उसकी सत्ता के नियम क़ानून हैं बिलकुल सरल
आदमी पाता है अपने-अपने कर्मों का सिला

हर शिरा क्षय ग्रस्त है अभिशप्त है वातावरण
बंद कर दूषित हवाओं आँधियों का सिलसिला

आदमी सोता है 'भारद्वाज' जब चिर नीद में
पूछती है मौत आखिर ज़िन्दगी में क्या मिला

चंद्रभान भारद्वाज

Monday, March 26, 2012

स्वर से स्वर मिला

दूर रहकर ही मिला या पास में आकर मिला 
मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला 

आदमी की अस्मिता का प्रश्न है अब सामने 
हैं सभी हैरान पर अब तक कहाँ उत्तर मिला 

दौड़ता था धमनियों में खून जिसके नाम से 
अब उसी की धमनियों में सन्निपाती ज्वर  मिला 

जो बताता था दिशा को और दूरी को कभी 
राह में उखड़ा हुआ वह मील का पत्थर मिला 

सूचना तो यह मिली थी गाँव में बारिश हुई 
खेत इक सूखा मिला पर और इक बंजर मिला 

एक अरसे बाद लौटे जब शहर से गाँव में 
घर मिला फूटा हुआ टूटा हुआ छप्पर मिला 

हो गया लगता है उसके साथ कोई हादसा 
झाड़ियों में मधुमती के पाँव का जेवर मिला 

आ गई सैयाद के चक्कर में शायद फाख्ता 
खून के धब्बे मिले हैं और टूटा पर मिला 

देखता है थालियों में रोज भूखा आदमी 
विष मिला है सब्जियों में दाल में कंकर मिला 

खोजते फिरते थे मंदिर और मस्जिद में जिसे 
बंद कर आँखें निहारा तो वही अन्दर मिला 

हाथ 'भारद्वाज' सारे अपने अपने धो रहे 
बहती गंगा में जिसे जैसा जहाँ अवसर मिला 

चंद्रभान भारद्वाज 

Monday, March 19, 2012

देखिये

गुनगुना कर देखिये या मुस्करा कर देखिये
ज़िन्दगी के बोझ को हलका बना कर देखिये 

आपकी भाषा समझते हैं बहुत अच्छी तरह 
फूल-पत्तों को व्यथा अपनी सुना कर देखिये 

इक-न-इक दिन पूर्ण होगी आपकी मन- कामना 
अपने सच्चे मन से कोई प्रार्थना कर देखिये 

धूप में वह छाँह देगा ज़िन्दगी भर आपको 
घर के आँगन में कोई पौधा लगा कर देखिये 

पंख लग जायेंगे सहसा आपके हर स्वप्न को 
रेशमी आँचल का थोड़ा प्यार पाकर देखिये 

ओढ़ना बरसातियों का छतरियों का छोड़ कर
पहली बारिश में कभी नंगा नहा कर देखिये 

देखना आसान हो जायेगा आगे का सफ़र 
यार 'भारद्वाज' को अपना बना कर देखिये 

चंद्रभान भारद्वाज 

Thursday, March 8, 2012

बनती है

किसी दिल में कहीं जब प्यार की तस्वीर बनती है 
कभी सोनी कभी शीरी कभी इक हीर बनती है 

उतरती जब कोई औरत बचाने आबरू अपनी 
स्वयं हँसिया गँड़ासा तीर या शमशीर बनती है 

बनाता है पसीना फूल खुद हर एक काँटे को 
हथेली पर उगी गाँठों से खुद तकदीर बनती है 

न ताजो-तख्त से बनती न बनती सोने चाँदी से 
फकीरी ओढ़ने से प्यार की जागीर बनती है 

भरोसे भाग्य के कुछ भी नहीं होता है दुनिया में 
असंभव होता है संभव जहाँ तदबीर बनती है 

लम्हे लिखते हैं जिसको  गुनगुनाती हैं उसे  सदियाँ 
ग़ज़ल में पीर ढल कर  जब जगत की पीर बनती है 

रसों का स्वाद 'भारद्वाज' भूखे पेट से पूछो 
कि बासी रोटियों की कैसे मुँह में खीर बनती है 

चंद्रभान भारद्वाज