Tuesday, May 11, 2010

हो नहीं सकता

बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता
वो तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता

मिटा दे लाँघ जाए या कि उसका अतिक्रमण कर ले 
मैं ऐसी कोई भी कमजोर सरहद हो नहीं सकता 

जमा कर खुद के पाँवों को चुनौती देनी पड़ती है 
कोई बैसाखियों के दम पे अंगद हो नहीं सकता 

लिए हो फूल हाथों में बगल में हो छुरी लेकिन 
महज सम्मान करना उसका मकसद हो नहीं सकता 

उफनकर वो भले ही तोड़ दे अपने किनारों को 
 कभी बरसात का नाला महानद हो नहीं सकता



ख़ुशी का अर्थ क्या जाने वो मन कि शांति क्या समझे
बिहंसता देख बच्चों को जो गदगद हो नहीं सकता

है 'भारद्वाज' गहरा फर्क दोनों के मिज़ाज़ों में
वो अब सत हो नहीं सकता मैं अब बद हो नहीं सकता

चंद्रभान भारद्वाज 

    

Tuesday, May 4, 2010

उनके माथे पर अक्सर पत्थर के दाग रहे

उनके माथे पर अक्सर पत्थर के दाग रहे
जो  इमली  अमरूदों   आमों   वाले बाग़ रहे

उन कदमों को पर्वत या सागर क्या रोकेंगे
जिनकी आँखों में पानी सीने में आग रहे

अँधियारे आँगन में रहतीं सपनों की किरणें 
जैसे   पूजा घर    में  जलता  एक चिराग   रहे  

कुछ उजले महलों में रहकर भी काले निकले
कुछ काजल की कोठी में रहकर बेदाग़ रहे 

केवल हाथ मिलाने भर से खून हुआ नीला
उनकी आस्तीन में अक्सर  ज़हरी नाग रहे

साँसों की रथयात्रा हरदम रहती है जारी 
जीवन की पीछे चाहे जितने खटराग  रहे 

इतनी 'भारद्वाज' रही प्रभु से विनती अपनी 
सिर पर छाँव रहे न रहे पर सिर पर पाग रहे 

चंद्रभान भारद्वाज